हिंदुस्तान में प्रजातंत्र।

प्रजातंत्र

जय हिंद,
(जैसे मेने अपने प्रथम लेख में कहा था कि अगले लेख में प्रजातंत्र की कार्यसेली ओर धरातल पर उनके कार्य कैसे करेंगे उनकी बात करूंगा पर कुछ तकनीकी और सरकारी प्रॉब्लम की वजह से उनके ऊपर हम आगे बढ़ नही सके जिन के लिए में खेद जताता हु ओर माफी मांगता हूं)

आज जब सुबह सुबह नए लेख के लिए सोच ही रहा था कि तभी अवधेश जी की कविता याद आ गई प्रजातंत्र के ऊपर उनकी कटाक्ष वाली जो सादर पेश करता हु यहाँ।

रचनाकार- अवधेश कुमार राय

विधा- कविता

अब कौन का तंत्र हैं.
कहने को प्रजातंत्र है.
मौलिकता की खोज में.
वादो यादो की सोच में.
जरा ठहर अभी तो जागा हैं.
मुल्क मेरा क्यो अभागा है.
चोरी कर हुकमरान गाते हैं.
लाशो में सज जवान घर आते है.
शहादत की गरिमा का हुकमरान माखौला उड़ाते हैं….
अब कौन सा तंत्र हैं.
कहने को प्रजातंत्र हैं.

  वैसे तो ये आधी है पर ये आधी ही काफी है आज के भारत के प्रजातंत्र के हालात को बयां कर ने हेतु।क्यों आज भारत के हालात लोकशाही में खस्ते दिखते है ?
15 अगस्त 1947  ठीक आधी रात को जब दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र का उदय हो रहा था तब एक सुनहरा भविष्य को देख प्रजा के मन मे बंटवारे का दर्द कम हो रहा था।
ओर उन लोगों के स
सपने ओर उनके देखे सुवर्ण आज़ाद मुल्क की परिकल्पना को आज की शासन पीढ़ी ओर ब्यूरोक्रेसी पता नही कहा ले के आय है।

आज के सरकारी विभागों के काम काज के तरीके नीति नियम पता नही किस प्रजातंत्र में उचित होते होंगे ये तो मेरे राम को पता होंगा।
पर जब जब लगता है अब बहोत ज्यादा ज्यादती ओर परेशानियों का पहाड़ बन रहा है तब परिस्थितिया बिगड़ ने लगती है

समय अनुसार अत्याचार और गरीब लोगों को दबाया जाता है शासन व्यवस्था अपने आप को सरमुख्यतार समझ ने लगे तब तब वो समाज में आग और विद्रोह के ज्वालामुखी बन कर तपते है जो कभी भी फट ने को तैयार हो।

पर यहा सवाल ये उठता है कि ऐसे प्रजातंत्र की कहा से आया? और क्यो आया??
आज के ये हिंदुस्तान के प्रजातंत्र की नींव आजादी के पहले से राखी जा रही थी।बंधारण सभा का गठन ओर उनका देश विदेश में जाकर सभी संविधान को पढ़ कर उनके सबसे ताकतवर पहलू को प्रयोजन कर ना ओर फिर दुनिया का सबसे बड़ा संविधान का प्रस्ताव ओर फिर अमलीकरण देना इस बात के संकेत है कि जिस प्रदेश की संस्कृति और सभ्यता अलग होंगी उनके कानून और नियम और हक को दूसरी अलग संस्कृति और सभ्यता को वो कानून ओर नियमो में बांधना।

जहा प्रजातंत्र के नाम पे प्रजा को धारा 144 में बांध देते है और शासक को अफाट ओर बेहिसाब सत्ता दे जाती है।
ओर उनके परिणाम वस होता है आंतरिक विद्रोह यानी नक्सलवाद।

आज नक्सलवाद की नींव हिंदुस्तान में रखी गई हो तो वो इन्ही अत्याचार और शासन व्यवस्था की बदहाली से तंग आकर ही हुई है। पर यहा एक बात में क्लियर कर दूंगी के में कतई नक्सलवाद को सही नही मानता हूं। गलत रास्ते से आप कभी सही नही हो सकते।पर युवा को जब रोजगार न मिले हर शासन विभाग में बाबुसाहि अपने सर चढ़ कर बोलति है।
कोई भी कम कर ने जॉव तो वो ही घिसी पीती कैसेट चढ़ाते है।
सरकारे आती जाती रहती है पर ये अहंकार की बाबुसाहि पता नही क्यों  बदलती नही।
वैसे
भारत में प्रजातंत्र की एक सबसें बड़ी समस्या आर्थिक व्यवस्था को इस प्रकार से व्यवस्थित करने की है जिससे कि प्रत्येक व्यक्ति को उचित जीवन स्तर प्राप्त कराया जा सके तथा उन्हें सुरक्षा तथा स्वतंत्रता प्रदान की जा सके ।

खेर जन की मानसिकता बदलते बदलते एक पीढ़ी तक निकल जाती है पर शरुआत तो आज से ही कर नई होंगी हमे आप को ओर उन सभी को जो बाबुसाहि से तंग आ चुके है।
जो प्रजातंत्र में लोगो को भेड़ बकरी समझते है उन लोगों को अब समझना होंगा की युवा अब जागने वाला है।शासक अपना रवैया बदले नही तो ये विरोध की चिंगारी जल उठेगी।

आपके सुजाव ओर कमेंट की अपेक्षा सह।
आपका,
किशोरगिरी आर गोस्वामी
(प्रजातंत्र)

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