प्रजातंत्र भारत के लोकतंत्र ने जैसे-जैसे पत्थरों को अपने सीने पर सहा है, उतने में तो कम-से-कम किसी भी विकासशील देश का लोकतंत्र कब का टें बोल जाता. वैसे तो किसी भी लोकतंत्र में इतनी जीवन-शक्ति होनी चाहिए कि वह विरोधों का सामंजस्य करता रहे और संकटों को जज्ब करता जाए. भारत में लोकतंत्र को कमजोर करने वाली ताकतों और प्रक्रियाओं की सूची बनाएँ तो वह निश्चित ही उसे मजबूत करने वाली सूची से काफी लम्बी बनेगी. सामन्तवाद और पूँजीवादी या समाजवादी तानाशाही के बरक्स लोकतंत्र की एक खासियत यह होती है कि वह अपनी आलोचना की इजाजत देता है. कई बार जब लोग लोकतंत्र को आड़े हाथों ले रहे होते हैं, भूल जाते हैं कि वे ऐसा करते हुए लोकतंत्र प्रदत्त अधिकार का प्रयोग ही कर रहे हैं. कई बार लोकतंत्र की आलोचना लोकतंत्र को और बेहतर बनाने के लिए नहीं बल्कि उसके खिलाफ की जाती है. एक अच्छे लोकतंत्र में इसकी भी जगह होनी चाहिए. ऐसे ज्यादातर खतरों का मुकाबला करने के लिए लोकतंत्र उन पर पाबन्दी नहीं लगाता बल्कि उनकी शक्ति खर्च हो जाने या व्यापक प्रक्रिया में जज्ब हो जाने का इन्तजार करता है. मगर लोकतंत्र का संकट बढ़ाने में ...